होंठो पर उनके नमी थी,
लड़खड़ाती ज़बा,
धीरे धीरे खुली थी,
कह रही थी,
अफसाने कई कई,
शरारते भी थी नई नई थी,
अज़ीब सी थी गहराईं आंखों में,
धड़कने भी बढ़ी बढ़ी सी थी,
डूब गए थे हम गहरी आंखों के समंदर में
कुछ कुछ बाहर से कुछ कुछ दिल के अंदर से
दूरियों में भी नजदीकियां थी,
ठहर सा गया था वो वक्त ,
रिश्ता भी गहराता जा रहा था,
हृदय प्रफुल्लित हो उठा था
प्रेम के उस पलछिन में
By टायसन कुशवाह