घर से निकले थे
अकेले
छोड़ के घर द्वार,
मां के हाथ का खाना,
आंगन सुहाना,
बांध कर बोरी बिस्तर और बिछौना,
छूटे थे सारे रिश्ते नाते, भाई बहन की अठखेलियां
दोस्तो के साथ हंसना गाना,
गुजर बसर करना था, हमको था थोड़ा बहुत कमाना,
आ गए थे अनजान से शहर में,
चेहरे भी थे सब अंजाने,
पहले दिन की नौकरी से थोड़ा कुछ आपस में एक दूसरे को जान गए,
अंजाने चेहरे को भी पहचान गए।
एक परिवार को छोड़ कर कई परिवार को जान गए
आज फिर एक घर को छोड़ कर अपने घर को चल पड़े है।
यादों की गठड़ी बांध कर अब हम विदाई ले रहे है।
By TK
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