शब्दों को बांधकर लबों से
रंज रखकर वो दिलों में,
वहम में जिया करते हैं
शायद सारे इल्जामात तो उन ही पर है,
मुजरिम हमें ही साबित कर दिया करते हैं
मेरे तो जहन में भी उनकी खाता नही है,
और वो अपने पर जुर्म लगा लिया करते है।
लफ्जों में मेरे ज़िक्र उनका था भी नही,
वो मेरे नाम पर कईयों से इल्म अपना सुना करते है,
अहम में है या वहम में है वो,
ताल्लुख अपने वो मुझसे ज़ाया करते है।
TK
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