माना की उनके लफ्ज महंगे होते है,
कुछ नही कहने की भी वो कीमत ले लेते है,
अधरो पर लाकर शब्दों को वो मौन ले लेते है,
अपने स्वार्थ से तोलकर,
हाँ कुछ बोलकर, कुछ तोड़ मरोड़ कर, कुछ घोलकर
वो दो शब्द कह देते है।
बेशक कर्कशता उनके स्वरों पर थी,
मीठे स्वरों से वो अब बोलने लगे है,
आज नई गाथा शुरू हुईं है,
धुंधली सी तस्वीरे भी अब साफ हुई है।
कैसे पीछे खींचने वाले भी अब आगे धकेल देते है।
सच्चाई जबां पर ना रहे तो कोई बात ना थी ,
दिलों मे रहें ऐसी ही अभिलाषा थी,
कोरे पन्नो पर स्याही पोत कर वो जवाब ले लेते हैl
जिक्र मेरे शब्दों में भी है, मेरे अर्थों में भी है,
जाने कैसे वो झूठे किरदारों में भी, थोड़ा ही सही, सच बोल ही देते है।
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