शुक्रवार, 16 सितंबर 2022

एक शिक्षक हू मैं

देकर ताकत कलम पकड़ने की , 

मस्तिष्क के अंधियारे में ज्ञान का दीपक रोशन करता हू में,

सिंचित कर शिष्य रूपी पौधो को शिक्षा से  

वटवृक्ष करता हू में।


कितनी भी हो राह कठिन, 

हो कितनी भी दूर मंजिल मेरे राही की,

बिछाकर पुष्प शिक्षा के, आत्मविश्वास के लगा के पहिए 

हर राह सरल, हर मंजिल निकट करता हू में


हो घड़ी परीक्षा की, लक्ष्य हो कोसो दूर

देकर दूर दृष्टि अर्जुन सी तानने को बाण साहस का हर लक्ष्य भेद करता हू में।


हो संघर्ष प्रतियोगिता का, शिखर हो ऊपर आसमान मे,

लगा कर पंख उमिद्दो के पंछियों को मेरे  उड़ान भरता हू मै।


एक शिक्षक हू में

पद, ओहदा, व्यवसाय, पेशे, रोजगार का सृजन ही नहीं 

राष्ट्र निर्माण करता हू मैं

 राष्ट्र निर्माण करता हू मै






कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें