नज़रे थी झुकी सी,
होंठ सुर्ख लाल से थे,
उठी जब वो नज़रे
उन होठों पर कई सवाल से थे।
जवाबे सवालों में हम यू मशगूल से हो गए थे
वो पूछते रहे सवाल कईं,
और हम हाज़िर जवाब से हो गए थे ।
फिर पूछ लिया उन्होंने एक सवाल ऐसा भी
किया हमने किनारा,
वो पूछते रहे
हमारे होंठ सिल से गए थे।
वो एक सवाल था ऐसा,
दिल की गहराई में,
कई परतों में,
दफ्न सा हो गया था जवाब जिसका।
आज उस सवाल की वो एक किताब सी लिख गए है,
उसके जवाब का एक पन्ना भी नही लिख सके है,
उनका वो सवाल आज भी है
और वो अधूरा सा जवाब आज भी है।
टायसन कुशवाह
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