रविवार, 27 दिसंबर 2015

मेरा रहगुज़र


हम थे अनजान से, अजनबी से,
ना देखा,
ना सुना, 
ना महसूस किया,
एक उम्र तक अपने रहगुज़र को 

हम मिले, साथ रहे 
जान गए एक दूजे को अंतरमन से,
ना सोचा,
ना समझा,
ना तय किया,
कदम बढ़ा कर चल दिए जीवन की डगर को 

हम रूठे आपस में 
मान गए एक दूजे से एक पल में,
ना कहा,
ना पूछा,
ना अहम किया 
बस यूंही साथ रहे हम जीवन के इस सफर में

बस यूंही साथ रहे जीवन के इस सफर में ।



टायसन कुशवाह 

 







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